होली क्यों मनाई जाती है| Holi kyon manae jaati hai in Hindi|होली क्या है|what is Holi| होलिका की कहानी|

इस लेख में जाने।
होली क्यों मनाई जाती है|Holi kyon manae jaati hai ine Hindi| होली मनाने के क्या-क्या कारण हैं |why we celebrate Holi in Hindi| होली से कौन-कौन सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। होली रंगों का त्योहार कैसे बना। होलिका की कहानी क्या है। प्रहलाद की कहानी क्या है। हिरण्यकशिपु कौन थे। इसकी पूरी जानकारी इस लेख में आप जानेंगे। इस लेख को पूरा पढ़ें।

होली क्यों मनाई जाती है|why we celebrate Holi|

होली बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास |मार्च|की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

होली रंगों का तथा हंसी खुशी का त्यौहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्यौहार है ।जो आज विश्व भर में मनाया जाने लगा हे।
रंगों का त्यौहार कहां जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से 8 दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत और नेपाल में मनाया जाता है ।यह त्यौहार कई अन्य देशों जिन में अल्पसंख्यक हिंदू लोग रहते हैं। वहां भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है ।पहले दिन को होलिका जलाई जाती है। जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन जिसे प्रमुखता धुलेंडी,व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम है। लोग एक दूसरे पर रंग अबीर गुलाल इत्यादि फेंकते हैं ।ढोल बजाकर होली के गीत गाए जाते हैं। और घर घर जाकर लोगों को रंग लगाया जाता है ।ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं। और फिर से दोस्त बन जाते हैं ।एक दूसरे को रंगने और गाने बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान करके विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं। गले मिलते हैं। और मिठाइयां खिलाते हैं।

होली मनाने का कारण|Holi manane ka Karan|

हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत में एक राजा था ।जो एक दानव की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मृत्यु का बदला लेना चाहता था। जिसे भगवान विष्णु ने मार दिया था। इसीलिए सत्ता पाने के लिए राजा ने वर्षों तक प्रार्थना की ,अंत में उन्हें एक वरदान दिया गया। लेकिन इसके साथ ही हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानने लगा और अपने लोगों से उसे भगवान की तरह पूजने को कहा‌
क्रूर राजा के पास प्रहलाद नाम का एक जवान बेटा था। जो भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था ‌पहलाद ने कभी अपने पिता के आदेश का पालन नहीं किया और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा, राजा इतना कठोर था। कि उसने अपने ही बेटे को मारने का फैसला किया। क्योंकि उसने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया था।

होलिका दहन की कहानी। Holika Dahan ki kahani|

हिरण कश्यप अपने बेटे प्रहलाद को मारना चाहता था ।क्योंकि प्रह्लाद उसकी आज्ञा का पालन नहीं करता था ।और उसे भगवान नहीं मानता था ।इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से खत्म करने की योजना बनाई
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से पूछा, जो आग से प्रतिरक्षित थी ।उसकी गोद में प्रहलाद के साथ अग्नि की एक चिता पर बैठना था ।उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी। लेकिन उनकी योजना प्रहलाद के रूप में नहीं चली जो भगवान विष्णु के नाम का पाठ कर रहे थे ।सुरक्षित थे। लेकिन होलिका जलकर राख हो गई। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध किया।

होली एक प्राचीन त्यौहार है।

होली सबसे पुराने हिंदू त्यौहारों में से एक है। और यह संभवतः ईसा के जन्म से कई शताब्दियों पहले शुरू हुआ था। इसके आधार पर होली का उल्लेख प्राचीन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है ‌।जैसे कि जैमिनी का पूरवा मीमांसा सूत्र और कथक ग्राम सूत्र।
यहां तक कि प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर होली की मूर्तियां हैं‌ इनमें से एक विजयनगर की राजधानी हंपी में 16 वीं शताब्दी का एक मंदिर है। मंदिर में होली के कई दृश्य है। जिनकी दीवारों पर राजकुमार और राजकुमारियों को दिखाया गया है। और उनके नौकर नौकरानियों के साथ राजमिस्त्री भी है। जो राज महल में पानी के लिए चिचड़ी रखते हैं।

होली रंगों का त्योहार कैसे बना ‌|how to make Holi color festival|

हिरण कश्यप और भगवान विष्णु के समय में होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता था ।होली का त्यौहार मनाया जाना 16 वीं शताब्दी के आसपास शुरू हुआ है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण रंगों से होली अपने दोस्तों के साथ मनाते थे ।इसलिए वह लोकप्रिय थे ।वह वृंदावन और गोकुल में अपने दोस्तों के साथ होली खेलते थे। फिर यह परंपरा पूरे गांव में फैल गई। गांव के सभी लोग होली मनाने लगे। फिर यह प्रथा जिला स्तर पर, प्रदेश स्तर पर ,देश स्तर पर, विश्व स्तर पर पहुंच गई।इस तरह इसे एक सामुदायिक कार्यक्रम बना दिया। यही वजह है कि आज वृंदावन में होली का उत्सव बेजोड़ है।
होली एक बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला त्यौहार है ।जो सर्दियों को अलविदा कहता है ।कुछ हिस्सों में उत्सव बसंत फसल के साथ भी जुड़े हुए हैं ।नई फसल से भरे हुए अपने भंडार को देखने के बाद किसान होली को अपनी खुशी के, एक हिस्से के रूप में मनाते हैं। इस वजह से होली को “वसंत महोत्सव “और” काम महोत्सव” के रूप में भी जाना जाता है।

होली मनाने की तैयारी कैसे की जाती है।| How to prepare Holi festival|

होली की तैयारी 1 महीने पहले शुरू कर दी जाती है। लोग लकड़ियां एक ही स्थान पर इकट्ठा करने लगते हैं ।ऐसा माना जाता है। कि उन लकड़ियों के ढेर में अगर कुछ भी रख दिया जाएगा। तो फिर उसे हटाया नहीं जा सकता है। इसलिए लोग लकड़िया ला ला कर एक ही स्थान पर इकट्ठा करते हैं। फिर फागुन की पूर्णिमा के दिन उन लकड़ियों को जलाते हैं।

होली का त्योहार गांव की सफाई के रूप में, समुदाय की सफाई के रूप में,

होली में लोग गांव के आसपास जो कांटे या खरपतवार जैसी अनेक चीजें पड़ी रहती हैं। गांव के आसपास जितनी बेकार लकड़ियां हैं। बेकार कांटों के ढेर हैं। बेकार की चीजें पड़ी हुई हैं। उन सबको एक ही स्थान पर इकट्ठा करके फागुन की पूर्णिमा के दिन जला देते हैं। इस प्रकार गांव में खरपतवार कूड़ा करकट की सफाई हो जाती है।

होली का त्यौहार बुराई पर ,भलाई की विजय के रूप में

पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण कश्यप एक राक्षस प्रवृत्ति का आदमी था। वह लोगों पर अत्याचार करता था। लोगों को सताता था। लोगों को परेशान करता था। इसलिए समाज के कुछ लोगों ने मिलकर के उसका वध कर दिया। तो इस प्रकार बुराई पर अच्छाई की विजय हुई।

निष्कर्ष:

हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु से अपने भाई की हत्या का बदला लेने के लिए| और अपने बेटे प्रहलाद से बदला लेने के लिए| अपनी बहन होलिका का सहारा लिया।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था ।कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। इसलिए हिरण कश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा, कि तुम प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाओ। क्योंकि तुम तो चलोगी नहीं , तुम्हें अग्नि में ना जलने का वरदान प्राप्त है। प्रहलाद जल जाएगा ।लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठी। तो होलिका तो जल गई। लेकिन प्रहलाद बच गए मतलब बुराई मर गई। और अच्छाई बच गई ।अच्छाई कभी मरती नहीं। बुराई हमेशा मरती है। इसलिए बुरे कर्म नहीं करने चाहिए। अच्छे कर्म करने चाहिए। अच्छे कर्म सदा जीवित रहते हैं। बुरे कर्म सदा मर जाते हैं। सत्य सदा जीवित रहता है ।युग बीते सत्य नहीं बीता ।सदा सत्य का आचरण करना चाहिए।

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